नद
तू नद सा बहता है रगों में मेरे कभी पत्थरों से टकराते उफान सा कभी झील सरीखा, मद्धम चाल सा कभी मुड़ते हुए एक छींट सी उछलती है कभी बह जाए झरने की ढलान सा किनारे पर बैठी हूँ मैं तेरे रंग उमड़ते देखती हूँ कभी तेरी आँखों सा हरा कभी आसमाँ नारंगी सा हर दिन नया लगता है तू पर हर पल मेरा अपना तू नद सा बहता है रगों में मेरी कभी मेरे अपने ही रक्त सा